बूँदें
जिस क्षण सलिल से होली,
ईश्वर के आँगन में खेली जाती है।
तत्क्षण ईश्वर के चरणों से निकली वारि,
वर्षा बन वसुधा की प्यास बुझाती है।
देखो वर्षा की बूँदों को ,
तरल , सुकोमल , उन्मादों को ,
नभ से धरा तक विचरती हुई ,
सुर - संगीत सजाती है।
एक रेशमी डोर बन वर्षा की बूँदें ,
सृष्टि के दो भिन्न - अभिन्न अंगों को ,
"व्योम को वसुमति" के बँधन में
बंधना सिखलाती है।
- SMRITI P.
Beautiful!! When is your next post coming out?
ReplyDeleteThanks for the appreciation.. And here I am with my new post. .
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