Thursday, 19 July 2018

चिट्ठियां

उसने मुझसे कहा तुम लिखती हो, बहुत खूब लिखती हो |कविता लिखती हो, किस्से लिखती हो|ज़िन्दगी के नए नए फ़लसफ़े लिखती हो|कभी बेबाक़ तो कभी संजीदगी से लिखती हो|कभी सहज और सरल तो कभी पेंचीदा लिखती हो|कभी धूप सी तेज़ कभी बारिश सी नम लिखती हो |आख़िर इतना खूब कैसे लिखती हो ?
और मैं बस इतना कह पाई, मैं तो चिट्ठियां लिखती हूँ|
मेरे दिल को तुम्हारे दिल से जोड़ने वाले जज़्बातों को शब्दों का आकार देकर चिट्ठियां लिखती हूँ |

Smriti P. 

7 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता! मुझे यह बेहद पसंद आई

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  2. धन्यवाद, यह वाकया मुझे निरंतर लिखने के लिए प्रेरित करता आया है।

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  3. बहुत अच्छी कविता है

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  4. What could I possibly comment on this post? You just craft emotions into words so beautifully.

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