उसने मुझसे कहा तुम लिखती हो, बहुत खूब लिखती हो |कविता लिखती हो, किस्से लिखती हो|ज़िन्दगी के नए नए फ़लसफ़े लिखती हो|कभी बेबाक़ तो कभी संजीदगी से लिखती हो|कभी सहज और सरल तो कभी पेंचीदा लिखती हो|कभी धूप सी तेज़ कभी बारिश सी नम लिखती हो |आख़िर इतना खूब कैसे लिखती हो ?
और मैं बस इतना कह पाई, मैं तो चिट्ठियां लिखती हूँ|
मेरे दिल को तुम्हारे दिल से जोड़ने वाले जज़्बातों को शब्दों का आकार देकर चिट्ठियां लिखती हूँ |
Smriti P.
और मैं बस इतना कह पाई, मैं तो चिट्ठियां लिखती हूँ|
मेरे दिल को तुम्हारे दिल से जोड़ने वाले जज़्बातों को शब्दों का आकार देकर चिट्ठियां लिखती हूँ |
Smriti P.
बहुत सुंदर कविता! मुझे यह बेहद पसंद आई
ReplyDeleteधन्यवाद, यह वाकया मुझे निरंतर लिखने के लिए प्रेरित करता आया है।
ReplyDeleteAmazing
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है
ReplyDeleteWhat could I possibly comment on this post? You just craft emotions into words so beautifully.
ReplyDeleteI'm delighted.
Deletehmmmm nice
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